Aati Kya Ambala - 1 in Hindi Adventure Stories by S Sinha books and stories PDF | आती क्या अम्बाला - 1

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आती क्या अम्बाला - 1

                               कहानी  -  आती क्या अम्बाला   

 


Part - 1  जब अचानक बहुत पुराने दोस्त मिल जाते हैं  ... 

 


बात काफी पुरानी है . फ़रवरी माह का प्रथम सप्ताह था .मैं गोवा के बागा बीच पर घूम रहा था . हालांकि भारत आये मुझे लगभग दस साल हो चुके थे पर गोवा आने का अवसर नहीं मिला था .मैं यूगांडा से भाग कर यहाँ आया था . वहाँ के तानाशाह ईदी अमीन ने जब 1972 में  सत्ता  अपने हाथ में  ले लिया था और एशियन्स को भगा दिया था  .  वहाँ के एशियाई लोगों को जिसमें ज्यादातर भारतीय ही थे उनको  जल्द से जल्द यूगांडा छोड़ने का आदेश दिया था .भारतीयों में भी सबसे ज्यादा गुजराती व्यापारी थे .उनका व्यापार तत्काल तानाशाह  ईदी  अमीन  के गुर्गों को दे दिया गया  . उनकी सारी चल और अचल सभी संपत्ति छीन कर उन्हें नब्बे दिनों के अंदर देश छोड़ने का फरमान जारी किया था  .  

 
हालांकि अभी दिन के दस ही बजे थे पर धूप काफी तेज थी . थोड़ा ठंढाने के इरादे से एक बीच  बीच शैक रेस्टोरेंट में जा बैठा और एक बीयर आर्डर कर सागर की ओर मुँह कर के बैठ गया. वहाँ बीच पर काफी चहल पहल थी .देश विदेश के हज़ारों सैलानी अपने अपने अंदाज़ में बीच पर भरपूर आनंद ले रहे थे . कोई सागर में सर्फिंग कर रहा था , कोई पारा सेलिंग  ,कोई गो कार्टिंग ,कोई रेत पर तौलिया बिछा औंधे मुँह धूप सेक रहा था  या रही थी ,तो कोई खाने पीने में व्यस्त था .रेस्टोरेंट लगभग खाली ही था क्योंकि ज्यादातर लोग बीच पर ही  व्यस्त थे .खैर वेटर मेरे सामने बीयर की बोतल और ग्लास रख गया .मैंने ग्लास में बीयर ले कर पीना शुरु किया . तभी मैंने देखा कि समुद्र से एक सुन्दर युवती स्विमिंग सूट में निकली . उसने किनारे पर रखे एक कुर्सी पर से टॉवेल कोट उठा कर पहना और इसी रेस्टोरेंट की ओर बढ़ी . उसके उन्नत उरोजों के संधि स्थल पर हीरे का लॉकेट जगमगा रहा था .जैसे जैसे वह निकट आ रही  थी मुझे उसका चेहरा जाना पहचाना लगा . वह मेरे सामने वाले टेबल पर  बैठ गयी और उसने ब्लैक कॉफ़ी आर्डर किया . मुझे लगा यह युवती शीला ही होगी  .

 
   दरअसल हम दोनों यूगांडा की राजधानी कम्पाला में एक ही स्कूल में पढ़ते थे और दोनों के  परिवार का वहीँ पर बिज़नेस था .मैं अपने टेबल पर बैठे हुए ही उसकी ओर लगातार देखते रहा यह सोच कर कि कब नज़रें मिलीं तो हाय  हैल्लो करूँ. आखिर जब कॉफ़ी की चुश्की ले कर उसने सर उठाया तो हमारी नज़रें मिलीं और मैंने मुस्कुराकर " हैल्लो " कहा और उसने भी मंद मुस्कान के साथ हाथ उठा कर  "हैल्लो "  कहा . मैंने उससे पूछा कि मैं अकेले बोर हो रहा हूँ , आपके टेबल पर आ जाऊँ तो उसने कहा " श्योर , माय प्लेज़र ".

 
   मैं अपना बीयर मग लेकर उसके टेबल पर जा बैठा . उसने जिस  चाल ढाल और जिस शोख अंदाज़ से मुझे अपने टेबल पर आने की इजाज़त दे दी, मुझे लगने लगा कि हो न हो यह  ये शीला ही होगी .स्कूल के दिनों में वह इसी तरह  फ्रैंक और मुँहफट थी . मैंने कहा " मैं चेतन ! "

 
  "और मैं शीला ....." , युवती ने कहा . 

  " तुम शीला पारीख " मैंने उसकी बात काट कर बीच में  कहा

  " अच्छा , तो तुम वही शरारती चेतन देसाई हो ? ", शीला बोली  " एक मिनट , मैं जरा चेंज कर के आ रही हूँ . "

इतना कह कर वह रेस्टोरेंट से बिल्कुल करीब अपने होटल से कपडे बदल कर आई और मेरे सामने वाली कुर्सी पर बैठ गयी .उसने कहा " हाँ मुझे याद है एक दिन मेरे स्कूल बैग में तुमने आई लव यू लिख कर डाल दिया था.मैं तुम्हारी लिखावट पहचानती थी . मैंने टीचर से शिकायत भी की  और तुम्हें वार्निंग मिली थी .उस समय तो हम दोनों करीब तेरह चौदह वर्ष के होंगे ."


 इतना बोल कर वह हँसने लगी थी . कुछ देर के लिए मैं अतीत के पन्ने पलटने लगा था  .  यूगांडा में मेरा और शीला दोनों के परिवार अच्छी तरह सैटल कर चुके थे  . दोनों परिवारों में जानपहचान थी  . अक्सर एक दूसरे के यहाँ आना जाना  होता था  . जब  स्कूल वाली बात शीला ने अपनी माँ को बताया था तब वे मुझसे नाराज हुई थीं  . पर शीला के पापा ने यह कह कर बात रफा दफा कर दिया था कि कच्ची उम्र में बच्चों से कुछ नादानी हो जाती है  . 

 
फिर मैं भी उसकी ओर देख कर  हँस पड़ा था और  फिर बोला  " चलो अच्छा है तुमने जल्दी ही मुझे पहचान लिया  . मैं डर रहा था कि अगर तुम शीला न हुई तो दूसरी लड़की मुझे बोर करेगी  . “ 

 
“ मुझे भी तुम्हें देख कर आभास हुआ था कि शायद तुम मेरे वही क्लास्स्मेट हो  . चलो यह भी अच्छा रहा देर आये दुरूस्त आये  . इतने पुराने दोस्त से इस तरह अचानक मिलना एक सुखद अनुभूति है  .”   शीला ने कहा 

 
“ तुम्हारा यूगांडा से यहाँ तक का सफर कैसा रहा और इतने दिनों तक कहाँ रही और अब तक क्या कर रही थी ? "

 
शीला बोली "  बहुत ही लम्बी कहानी है . कहानी सुनाने में काफी वक़्त लगेगा  .अपन ईमेल आईडी या व्हाट्सप्प नंबर दो , पूरी कहानी अटैचमेंट में भेज दूँगी  .” 

 
“ तुम बिलकुल नहीं बदली  .बिलकुल वही अंदाज़ , बेफिक्र बेख़ौफ़ और बेबाक  . “ मैंने कहा और हँस पड़ा 

 
बड़े ही खूबसूरत अंदाज़ में शीला भी दिल से खिलखिला कर हँस मुस्कुरा पड़ी  . मैंने फिर कहा “ अभी बीच पर कुछ ख़ास इंगेजमेंट तो है नहीं , फिलहाल कुछ तो बता ही सकती हो  .” 


शीला ने कहना शुरू किया “ तुम्हें भी युगांडा से भारतीयों के पलायन की कथा मालूम है बल्कि तुम खुद भी उसके शिकार हो  . तुम जानते हो कि  यूगांडा से जब हमलोगों  को निकाला गया था तब साथ में बस एक सूट केस और 55 ब्रिटिश पाउंड  ले जाने की इजाजत थी , बाकी सब कुछ हमलोगों से छीन लिया गया था . हमलोग तो दादाजी के समय से यूगांडा में सेटल्ड थे. हमारा अच्छा  खास व्यापार था  पर तानाशाह ने सब कुछ छीन कर हमें देश से निकाल दिया था ."


मैंने जब उस से पूछा कि  बीयर चलेगा तो उसने निःसंकोच ' हाँ ' कहा था और मैंने भी वेटर को बीयर लाने को कहा और वेटर ने भी उसी तत्परता से बीयर की बोतल ला कर टेबल  पर रख दिया .मैंने बोतल खोल कर  ग्लास में बीयर ढाल कर उसकी ओर बढ़ा दिया  .


शीला ने दो घूँट बीयर लेते हुए कहा " वो खौफनाक दिन मुझे आजीवन याद रहेगा . यूगांडा आर्मी ( सेना ) के कुछ दरिंदे मेरे घर में घुसे थे .लूट पाट की और फिर बाद में पिताजी  की  आँखों के सामने माँ की इज्जत भी लूटी .मैं तो स्कूल में थी वर्ना मेरा भी वही हश्र होता .पिताजी दिल के मरीज थे, उन्हें बहुत गहरा सदमा पहुँचा  . मैसिव हार्ट अटैक हुआ  .  उन्हें तो संसार से मुक्ति मिल गयी पर हमें अनाथ छोड़ गए . अब परिवार में सिर्फ मैं और माँ ही बचे थे .आगे सिर्फ अँधेरा ही अँधेरा नज़र आ रहा था . मजबूरी थी , भारत तो आना ही था. पिछले 20  से ज्यादा वर्षों से भारत से संपर्क ना के बराबर रह गया था .कोई नज़दीकी रिश्तेदार भी नजर नहीं आ रहा  था ."


उसकी आँखों से आँसूं की धार बह रही  थी . बीयर की ग्लास खाली करते हुए वह बोली  कि एक ग्लास से ज्यादा वह नहीं पी सकती थी  . तब  मैंने कहा   " कोई बात नहीं है , एज यू लाइक  ".


जब तुमने मेरी कहानी शुरू करा ही दिता तब और सुनो  और शीला ने आगे कहना जारी रखा  " माँ का एक चचेरा भाई दिल्ली में था .उसने अपने घर में कुछ दिन हमें शरण दिया  .शुरू में माँ ने एक गुजराती सेठ के यहाँ खाना बनाना शुरु किया और  घर  बैठ कर साड़ी  में पीको और फॉल लगाने का काम भी शुरू किया  .फिर माँ ने एक सिलाई मशीन  खरीद लिया  .माँ को पहले से कुछ सिलाई बुनाई आती थी इसलिए वह मोहल्ले से ब्लाउज , फ्रॉक ,पीको वगैरह का काम भी करने लगी .इस बीच सरकार से भी शरणार्थियों कुछ सहायता मिली तो एक छोटी सी लेडीज टेलर की दुकान माँ ने  खोल ली .मैं स्कूल से आगे नहीं पढ़ सकी .मैंने ब्यूटिशियन का कोर्स किया  कुछ दिन घर से ही यह काम किया भी पर मुझे मॉडलिंग का शौक था ."

 

 क्रमशः 


नोट - कहानी पूर्णतः काल्पनिक है  .